सोमवार, 29 नवंबर 2010

रुसवाई

बयां से तेरे ऱाज ये आम हो गया,
चर्चा मेरी मुहब्बत का सरेआम हो गया.
सैकडों दीवाने मरते हैं तुझ पर,
फिजूल ही आशिकों में कत्लेआम हो गया.
दुश्वारियों का तोफहा मिला मुझे,
रुसवाई का रिसाला तेरे नाम हो गया.
कहते थे जुबां पे ना कभी आएगी दिल की बात,
इक आह निकली और,
सब कसमो वादों का काम तमाम हो गया.
आ ले चलू तुझे किसी और जहाँ में,
इस जहाँ से जाने का इंतजाम हो गया.
इक दुनिया हो सपनो की, उम्मीदों का घर हो,
अब ये ख्वाब हकीक़त बनाना और आसान हो गया.

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

उल्फत का फ़साना

सूख गए आंसू भी अब, दिल में दर्द का समंदर ना रहा,
क्या कहें, हम प्यार में ना रहे या प्यार हम में ना रहा.
उड़ गए सारे पन्छी उस दरख्त से, किसी का वहाँ आशिया ना रहा,
सूना पड़ा अकेला दरख्त उसका कोई साथी ना रहा.
बंद हो गई उस दीवाने की आँखें भी, उसे होश ना रहा,
शायद उसके जिस्म में अब लहू का इक कतरा ना रहा.
उजड़ गई सारी बस्ती इक पल में,
किसी आदम का वहाँ अब नाम-ओ-निशा ना रहा.
सोचा करते थे आयंगे इक दिन आगोश में वो,
ग़ुम हो गए वो कहीं, अब मेरी तमन्नाओं का जहां ना रहा.
बंद पड़ी भवरों की गुंजन, किसी कली में अब रस ना रहा,
मेरे महबूब का अब मैं अपना ना रहा.
बंजर पड़ी ये धरती सारी , हताश बैठा वो धरती पुत्र,
उसकी झोली में अब बोने को इक दाना ना रहा.
क्या कहें, क्या रहा क्या चला गया,
हिसाब किताब करने का अब ज़माना ना रहा.
वो देखो विदूषक का जनाज़ा चला जा रहा,
अब हँसने का किसी के पास कोई बहाना ना रहा.
माना और भी गम है ज़माने में मुहब्बत के सिवा,
क्या कहू ऐ साकी गम गलत करने को अब पैमाना ना रहा.
पायंगे वो मुझ "बदनाम शायर" को अब कहाँ ,
उनके दिल में अब मेरा कोई ठिकाना ना रहा.

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

हकीक़त

पानी की बूँद है या मोती जड़े हैं जुल्फ में तेरी,
बलखाती नागिन सी लट है या रेशम की डोरी.
कजरारे नैन हैं या हैं मय के प्याले,
यूँ तो साकी बहुत हैं पर तू पिलाती है नज़रों से तेरी.
लब है के पंखुडी गुलाब की सी है,
होठों की कलियाँ है तबस्सुम से भरी.
संगमरमरी बाहें हैं या पाश है मुहब्बत का,
आरजू बस इतनी के कज़ा नसीब हो बाहों में तेरी.
मदहोश तरुनाई की बात क्या कहिये,
जैसे फलों से लदी शाख कोई .
कमसिन कटी पे इठलाता कमरबंद
उफ़ यूँ लचक के न चल, कहीं थम न जाये सांस मेरी.
यूँ न छनका पायल को ऐ नादां, हर बार देती है यूँ मुझे बेकरारी.
सारा जहां है सपना महबूब मेरे, एक बस तू ही हकीक़त मेरी.




बुधवार, 19 अगस्त 2009

कृपया पाठक गण शीर्षक बताएं

जब सारा ज़माना ही खफा है मुझसे, तो फिजाओं के महकने से क्या होगा,
इक तू ही बातें दो चार किया करता है, ना पूछेगा हाल तो मेरा क्या होगा.
ना बरसे सावन इस बार तो क्या, फुहारों से बंजर धरती का क्या होगा,
जो ना कूकी कोयल इस बार बगिया में, लाख सरगम छेड़ने से क्या होगा.
कुछ लफ्ज़ तारीफ़ के कोई कह दे तो अच्छा है, वरना बदनाम शायर का नाम क्या होगा,
नज़र भर देख कर भी चुरा ली निगाह, जो तू इनायत ना करे तो क्या होगा.
अकेला हूँ बचपन से रहूँगा आगे भी, कोई साथी ना मिला तो क्या होगा,
चुन रहा हूँ पत्थर आशियाने के लिए, गर बन गई मजार तो क्या होगा.
रहू ना रहू मैं तेरे तवज्जो देने तक, पर मेरी ग़ज़ल रहेगी मेरा शेर होगा.

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

कशमकश

रहने दो इस समझदारों की दुनिया में इक नासमझ मुझे भी,
न सिखाओ ज़माने भर की चालाकियां मुझे भी.
यूँ तो भरते हैं दम लोग वफाओं का, रहने दो पर मुझे बेवफा ही,
यूँ ही सही पर बचा रहेगा दामन मेरा झूठी वफ़ा के वादों से.
वो जो कह गए हैं मुहब्बत ही जिंदगी है,
महबूब की बाँहों में है जन्नत भी, चाहूँगा मुझे नसीब हो जहन्नुम ही,
यूँ रहेगा बरक़रार दिल का करार और न होगी जुदाई की तड़प भी.
करके आँखें चार आशिक गिन रहे हैं रहे हैं चाँद सितारे रात भर ,
रहकर अकेला सोता हूँ चैन से और देखता हूँ सुनहले ख्वाब भी .
खुदा बचाए बला से, कहते हैं इश्क जिसे,
पर कहता है दिल बार बार ,
चाहता हूँ जिसे में टूटकर कह दूं उसे ही मैं अपना खुदा भी.

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

अमावास की रात

ना वो आये ना आया कोई पैगाम उनका,
तकते रहे ये सूने नयन उनकी डगर.
क्षितिज पर हो रहा धरा का गगन से मिलन,
घटा भी मंडरा रही आज पर्वत पर.
देखा था इक रात चाँद को सितारों से घिरा हुआ,
और देखी थी जगमगाती आसमानी चादर.
लहरों ने भी खूब मचाया था शोर.
पर आज सूनी पड़ी हैं गलियाँ सारी,
ना जाने वो कब आयंगे ,
कब खिलेगा खुशियों का संसार.
दिन गुज़रे महीने बने, बीत गए साल,
पर शेष रहा मेरा इंतजार.
चाँद भी ना आया आज दिल बहलाने को ,
बड़ी स्याह है आज की रात ,
तरसती रही अमावास की रात दीदार को चाँद के रात भर.

बुधवार, 6 फ़रवरी 2008

तलाश

आशिक हूँ, आशिकी का बहाना ढूँढता हूँ,
मर मिट जाने को इश्क का खुदा ढूँढता हूँ.
बीत गया जो कल किसी दिन,
वही ज़माना फिर से ढूँढता हूँ.
मोती हूँ सागर का , हर पल
बस किनारा ही ढूँढता हूँ.
आवाजों के बाजारों में
खामोशी का नज़राना ढूँढता हूँ.
जो खत्म न हो कभी
ऐसे सिलसिले का मुहाना ढूँढता हूँ.
सदा याद करे ये ज़माना ,
लिखने को ऐसा फ़साना ढूँढता हूँ.
तलाश है मेरी अभी अधूरी,
मेरे जैसा मिजाज आशिकाना ढूँढता हूँ.

मंगलवार, 29 जनवरी 2008

पवन

मैं "एक बदनाम शायर" अब तक तो खुद के लिए ही लिखता आया था,
जो मुझमे था वही बस मैंने शब्दों में पिरोकर कागज़ पर उतार दिया.
अब मैंने कुछ कल्पना का सहारा लिया है,
आशा है आपको पसंद आएगा.
आपकी अनमोल टिप्पणियों के इंतज़ार में,
"एक बदनाम शायर"









धीरे-धीरे मंद-मंद चलती है पवन,
छूकर मुझे चली जाती है पवन.
सरगोशियों के एहसासों से भरी ये पवन,
देती है मुझको नित नए सपन.

चहचहाना चिडियों का, गुन्जाना भवरों का,
सब सुनती जाती है मदमस्त पवन.
दूर नील गगन में उड़ते पंछी कुछ छोटे कुछ बड़े,
कुछ काले कुछ नीले ओढे पंखो के दुशाले
जहाँ करते हैं विचरण , वो है मेरा वतन।

रूकती नहीं कहीं, चलती जाती है पवन,
देती संदेसा गतिमान होने का,
हर पल उन्नत बनने का,
गढ़ने का सफलता के नवकिर्तिमान.
देती मुझको जीवन ये पवन,
सबसे न्यारी सबसे प्यारी ये पवन.

गुरुवार, 17 जनवरी 2008

कभी ग़ज़ल कभी आयत

कभी ख्याल कभी उसे याद लिखा,
कभी होश में कभी बेहोशी में बार-बार लिखा.
कभी आंसू लिखा कभी शबनम लिखा,
उन जर्द पत्तों पे नाम मैंने उसका कई बार लिखा.

कभी पूजा लिखा कभी इबादत लिखा,
समंदर की सुनहरी रेत पर हाल-ए-दिल हर बार लिखा.
कभी ग़ज़ल कभी आयत उसे लिखा,
हर जुमला तेरी याद से सराबोर लिखा.

कभी हकीक़त कभी फ़साना लिखा,
उसकी अदाओं को हमने इक जमाना लिखा.
कभी बेवफा कभी बावफा लिखा,
बेरुखी को भी उसकी हमने हमेशा प्यार लिखा.

क्या यही मुहब्बत है

हमें आता न था आंसू बहाना,
ये तो हमारे दोस्तों की इनायत है.
न कोई गिला है उनसे हमें ,
न उनसे कोई शिकायत है.
उम्र सारी कटी आरजू में उनकी,
दीदार की रस्में ही अब हमारी इबादत है.
वो जरा तवज्जो करें तो
कह सुनाएँ हम हाल-ए-दिल अपना भी,
क्या इतनी सी हमें इजाज़त है.
ढलके थे कुछ अश्क भी मेरी आँखों से
पर जुबां में हरक़त न थी,
हमसे हिमाकत न हुई,
गोया क्या यही शराफत है.
खबर उनके आने की सुन
कफ़न में अब चैन कहाँ मुझको ,
कोई बतलाये क्या यही मुहब्बत है.

मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

कोई उनसे कह दे

कोई उनसे कह दे के अब हमें याद ना आये,
शाम सबेरे हमारे ख्यालात में ना आयें.
रह लेंगे हम उनके बिना भी इस जहाँ में,
बस कुछ तोहफे अपनी वफ़ा के वो हमारे लिए छोड़ जाये.

मालूम था हमें वो कभी ना चाहेंगे हमको,
कोई गिला नहीं उनसे, न कोई शिकायत है.
बस इक बार लम्हों को थामकर देख लेते वो भी,
मेरी मुहब्बत के फूल पतझड़ में भी मुरझा न पाएंगे.

यू इस तरह अजनबी होकर वो चले जाते हैं,
हम कुछ साथ गुजरे पलों की यादों में खोते चले जाते हैं,
कोई उनसे कह दे अब हमें याद ना आयें,
बस उनकी यादों की दौलत लिए हम इस दुनिया से चले जाते हैं.

तसवीर

रूख से पर्दा जब उसके सरक जायेगा,
आफताब भी उसका नूर देखकर शरमायेगा.
उसकी मासूम मुस्कुराहट देखकर,
पतझड़ में भी दरख्त फूल बरसायेगा.
उसके नज़र-ए-जाम को पीकर,
खुदा भी झूम झूम गायेगा.
उसके दामन की एक जुम्बिश से
बहारों का रूख मुड जायेगा.
देख कर उसके संगमरमरी बदन का जलवा,
महताब भी आसमा में कही छिप जायेगा.
सावन की काली घटा से भी स्याह हैं जुल्फें जिसकी,
छिपा के रखता हूँ ऐसी इक सूरत नज़रों से सबकी.
रूबरू नहीं हुआ कभी उससे,
पर मेरी सासों में है खुशबू उसकी.
यकी है मुझे इस कायनात पर खुदा की,
वो अप्सरा है कही आस-पास ही
ख्वाबो में रखता हूँ तसवीर जिसकी.

जुस्तजू

देखता हूँ उसकी आँखों में कहीं कोई झलक मेरी भी होगी ,
दोस्ती, प्यार, वफ़ा, न सही नफरत भरी निगाह ही होगी.
रोज़ सजदे में झुकता हूँ उसके, करता हूँ इबादत,
किसी रुत में उसकी नज़र-ए इनायत मुझ पर भी होगी.
मांगता नहीं मैं सारे जहाँ की नैमतें उससे,
उसका नाम मेरे नाम के साथ आये ऐसी इक तहरीर तो होगी.
उसके हाथों में मेरे नाम की मेहंदी ना सही,
पर यकी है मुझे इतना
की मेरी मजार कभी उसके अश्कों से नम ज़रूर होगी.