गुरुवार, 26 नवंबर 2009

उल्फत का फ़साना

सूख गए आंसू भी अब, दिल में दर्द का समंदर ना रहा,
क्या कहें, हम प्यार में ना रहे या प्यार हम में ना रहा.
उड़ गए सारे पन्छी उस दरख्त से, किसी का वहाँ आशिया ना रहा,
सूना पड़ा अकेला दरख्त उसका कोई साथी ना रहा.
बंद हो गई उस दीवाने की आँखें भी, उसे होश ना रहा,
शायद उसके जिस्म में अब लहू का इक कतरा ना रहा.
उजड़ गई सारी बस्ती इक पल में,
किसी आदम का वहाँ अब नाम-ओ-निशा ना रहा.
सोचा करते थे आयंगे इक दिन आगोश में वो,
ग़ुम हो गए वो कहीं, अब मेरी तमन्नाओं का जहां ना रहा.
बंद पड़ी भवरों की गुंजन, किसी कली में अब रस ना रहा,
मेरे महबूब का अब मैं अपना ना रहा.
बंजर पड़ी ये धरती सारी , हताश बैठा वो धरती पुत्र,
उसकी झोली में अब बोने को इक दाना ना रहा.
क्या कहें, क्या रहा क्या चला गया,
हिसाब किताब करने का अब ज़माना ना रहा.
वो देखो विदूषक का जनाज़ा चला जा रहा,
अब हँसने का किसी के पास कोई बहाना ना रहा.
माना और भी गम है ज़माने में मुहब्बत के सिवा,
क्या कहू ऐ साकी गम गलत करने को अब पैमाना ना रहा.
पायंगे वो मुझ "बदनाम शायर" को अब कहाँ ,
उनके दिल में अब मेरा कोई ठिकाना ना रहा.

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

हकीक़त

पानी की बूँद है या मोती जड़े हैं जुल्फ में तेरी,
बलखाती नागिन सी लट है या रेशम की डोरी.
कजरारे नैन हैं या हैं मय के प्याले,
यूँ तो साकी बहुत हैं पर तू पिलाती है नज़रों से तेरी.
लब है के पंखुडी गुलाब की सी है,
होठों की कलियाँ है तबस्सुम से भरी.
संगमरमरी बाहें हैं या पाश है मुहब्बत का,
आरजू बस इतनी के कज़ा नसीब हो बाहों में तेरी.
मदहोश तरुनाई की बात क्या कहिये,
जैसे फलों से लदी शाख कोई .
कमसिन कटी पे इठलाता कमरबंद
उफ़ यूँ लचक के न चल, कहीं थम न जाये सांस मेरी.
यूँ न छनका पायल को ऐ नादां, हर बार देती है यूँ मुझे बेकरारी.
सारा जहां है सपना महबूब मेरे, एक बस तू ही हकीक़त मेरी.




बुधवार, 19 अगस्त 2009

कृपया पाठक गण शीर्षक बताएं

जब सारा ज़माना ही खफा है मुझसे, तो फिजाओं के महकने से क्या होगा,
इक तू ही बातें दो चार किया करता है, ना पूछेगा हाल तो मेरा क्या होगा.
ना बरसे सावन इस बार तो क्या, फुहारों से बंजर धरती का क्या होगा,
जो ना कूकी कोयल इस बार बगिया में, लाख सरगम छेड़ने से क्या होगा.
कुछ लफ्ज़ तारीफ़ के कोई कह दे तो अच्छा है, वरना बदनाम शायर का नाम क्या होगा,
नज़र भर देख कर भी चुरा ली निगाह, जो तू इनायत ना करे तो क्या होगा.
अकेला हूँ बचपन से रहूँगा आगे भी, कोई साथी ना मिला तो क्या होगा,
चुन रहा हूँ पत्थर आशियाने के लिए, गर बन गई मजार तो क्या होगा.
रहू ना रहू मैं तेरे तवज्जो देने तक, पर मेरी ग़ज़ल रहेगी मेरा शेर होगा.

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

कशमकश

रहने दो इस समझदारों की दुनिया में इक नासमझ मुझे भी,
न सिखाओ ज़माने भर की चालाकियां मुझे भी.
यूँ तो भरते हैं दम लोग वफाओं का, रहने दो पर मुझे बेवफा ही,
यूँ ही सही पर बचा रहेगा दामन मेरा झूठी वफ़ा के वादों से.
वो जो कह गए हैं मुहब्बत ही जिंदगी है,
महबूब की बाँहों में है जन्नत भी, चाहूँगा मुझे नसीब हो जहन्नुम ही,
यूँ रहेगा बरक़रार दिल का करार और न होगी जुदाई की तड़प भी.
करके आँखें चार आशिक गिन रहे हैं रहे हैं चाँद सितारे रात भर ,
रहकर अकेला सोता हूँ चैन से और देखता हूँ सुनहले ख्वाब भी .
खुदा बचाए बला से, कहते हैं इश्क जिसे,
पर कहता है दिल बार बार ,
चाहता हूँ जिसे में टूटकर कह दूं उसे ही मैं अपना खुदा भी.

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

अमावास की रात

ना वो आये ना आया कोई पैगाम उनका,
तकते रहे ये सूने नयन उनकी डगर.
क्षितिज पर हो रहा धरा का गगन से मिलन,
घटा भी मंडरा रही आज पर्वत पर.
देखा था इक रात चाँद को सितारों से घिरा हुआ,
और देखी थी जगमगाती आसमानी चादर.
लहरों ने भी खूब मचाया था शोर.
पर आज सूनी पड़ी हैं गलियाँ सारी,
ना जाने वो कब आयंगे ,
कब खिलेगा खुशियों का संसार.
दिन गुज़रे महीने बने, बीत गए साल,
पर शेष रहा मेरा इंतजार.
चाँद भी ना आया आज दिल बहलाने को ,
बड़ी स्याह है आज की रात ,
तरसती रही अमावास की रात दीदार को चाँद के रात भर.