गुरुवार, 20 अगस्त 2009

हकीक़त

पानी की बूँद है या मोती जड़े हैं जुल्फ में तेरी,
बलखाती नागिन सी लट है या रेशम की डोरी.
कजरारे नैन हैं या हैं मय के प्याले,
यूँ तो साकी बहुत हैं पर तू पिलाती है नज़रों से तेरी.
लब है के पंखुडी गुलाब की सी है,
होठों की कलियाँ है तबस्सुम से भरी.
संगमरमरी बाहें हैं या पाश है मुहब्बत का,
आरजू बस इतनी के कज़ा नसीब हो बाहों में तेरी.
मदहोश तरुनाई की बात क्या कहिये,
जैसे फलों से लदी शाख कोई .
कमसिन कटी पे इठलाता कमरबंद
उफ़ यूँ लचक के न चल, कहीं थम न जाये सांस मेरी.
यूँ न छनका पायल को ऐ नादां, हर बार देती है यूँ मुझे बेकरारी.
सारा जहां है सपना महबूब मेरे, एक बस तू ही हकीक़त मेरी.




5 टिप्‍पणियां:

अर्चना तिवारी ने कहा…

वाह ! आपकी कल्पना है या हकीकत जो भी है...है बहुत खूबसूरत

बेनामी ने कहा…

सारा जहां है सपना महबूब मेरे, एक बस तू ही हकीक़त मेरी.


बहुत खूबसूरत रचना...आप में बेहतरीन कल्पना शक्ति है...कमाल कि भावाभिव्यक्ति है आपकी इस रचना में...बधाई

Unknown ने कहा…

ek na ek din jarur haqeeqat bnega fasana apka!!!!!!!!!1

Unknown ने कहा…

kya khub keha apne-
"Aarzoo bus itni k qza naseeb ho baahon mein teri
.................................
.................................
sara zehan hai sapna mehaboob mere,
ek bus tu hi haqeeqat meri"

अर्चना तिवारी ने कहा…

शायर साहब..बहुत दिन हो गए..कुछ नया लिखिए ना..माना कि आप जैसे शायर को वाहवाही की जरूरत नहीं है..लेकिन कुछ हमारा भी तो ख्याल कीजिये...हम तो आपकी ग़ज़लों के दीवाने हैं...