कोई उनसे कह दे के अब हमें याद ना आये,
शाम सबेरे हमारे ख्यालात में ना आयें.
रह लेंगे हम उनके बिना भी इस जहाँ में,
बस कुछ तोहफे अपनी वफ़ा के वो हमारे लिए छोड़ जाये.
मालूम था हमें वो कभी ना चाहेंगे हमको,
कोई गिला नहीं उनसे, न कोई शिकायत है.
बस इक बार लम्हों को थामकर देख लेते वो भी,
मेरी मुहब्बत के फूल पतझड़ में भी मुरझा न पाएंगे.
यू इस तरह अजनबी होकर वो चले जाते हैं,
हम कुछ साथ गुजरे पलों की यादों में खोते चले जाते हैं,
कोई उनसे कह दे अब हमें याद ना आयें,
बस उनकी यादों की दौलत लिए हम इस दुनिया से चले जाते हैं.
मंगलवार, 11 दिसंबर 2007
तसवीर
रूख से पर्दा जब उसके सरक जायेगा,
आफताब भी उसका नूर देखकर शरमायेगा.
उसकी मासूम मुस्कुराहट देखकर,
पतझड़ में भी दरख्त फूल बरसायेगा.
उसके नज़र-ए-जाम को पीकर,
खुदा भी झूम झूम गायेगा.
उसके दामन की एक जुम्बिश से
बहारों का रूख मुड जायेगा.
देख कर उसके संगमरमरी बदन का जलवा,
महताब भी आसमा में कही छिप जायेगा.
सावन की काली घटा से भी स्याह हैं जुल्फें जिसकी,
छिपा के रखता हूँ ऐसी इक सूरत नज़रों से सबकी.
रूबरू नहीं हुआ कभी उससे,
पर मेरी सासों में है खुशबू उसकी.
यकी है मुझे इस कायनात पर खुदा की,
वो अप्सरा है कही आस-पास ही
ख्वाबो में रखता हूँ तसवीर जिसकी.
आफताब भी उसका नूर देखकर शरमायेगा.
उसकी मासूम मुस्कुराहट देखकर,
पतझड़ में भी दरख्त फूल बरसायेगा.
उसके नज़र-ए-जाम को पीकर,
खुदा भी झूम झूम गायेगा.
उसके दामन की एक जुम्बिश से
बहारों का रूख मुड जायेगा.
देख कर उसके संगमरमरी बदन का जलवा,
महताब भी आसमा में कही छिप जायेगा.
सावन की काली घटा से भी स्याह हैं जुल्फें जिसकी,
छिपा के रखता हूँ ऐसी इक सूरत नज़रों से सबकी.
रूबरू नहीं हुआ कभी उससे,
पर मेरी सासों में है खुशबू उसकी.
यकी है मुझे इस कायनात पर खुदा की,
वो अप्सरा है कही आस-पास ही
ख्वाबो में रखता हूँ तसवीर जिसकी.
जुस्तजू
देखता हूँ उसकी आँखों में कहीं कोई झलक मेरी भी होगी ,
दोस्ती, प्यार, वफ़ा, न सही नफरत भरी निगाह ही होगी.
रोज़ सजदे में झुकता हूँ उसके, करता हूँ इबादत,
किसी रुत में उसकी नज़र-ए इनायत मुझ पर भी होगी.
मांगता नहीं मैं सारे जहाँ की नैमतें उससे,
उसका नाम मेरे नाम के साथ आये ऐसी इक तहरीर तो होगी.
उसके हाथों में मेरे नाम की मेहंदी ना सही,
पर यकी है मुझे इतना
की मेरी मजार कभी उसके अश्कों से नम ज़रूर होगी.
दोस्ती, प्यार, वफ़ा, न सही नफरत भरी निगाह ही होगी.
रोज़ सजदे में झुकता हूँ उसके, करता हूँ इबादत,
किसी रुत में उसकी नज़र-ए इनायत मुझ पर भी होगी.
मांगता नहीं मैं सारे जहाँ की नैमतें उससे,
उसका नाम मेरे नाम के साथ आये ऐसी इक तहरीर तो होगी.
उसके हाथों में मेरे नाम की मेहंदी ना सही,
पर यकी है मुझे इतना
की मेरी मजार कभी उसके अश्कों से नम ज़रूर होगी.
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