गुरुवार, 20 अगस्त 2009

हकीक़त

पानी की बूँद है या मोती जड़े हैं जुल्फ में तेरी,
बलखाती नागिन सी लट है या रेशम की डोरी.
कजरारे नैन हैं या हैं मय के प्याले,
यूँ तो साकी बहुत हैं पर तू पिलाती है नज़रों से तेरी.
लब है के पंखुडी गुलाब की सी है,
होठों की कलियाँ है तबस्सुम से भरी.
संगमरमरी बाहें हैं या पाश है मुहब्बत का,
आरजू बस इतनी के कज़ा नसीब हो बाहों में तेरी.
मदहोश तरुनाई की बात क्या कहिये,
जैसे फलों से लदी शाख कोई .
कमसिन कटी पे इठलाता कमरबंद
उफ़ यूँ लचक के न चल, कहीं थम न जाये सांस मेरी.
यूँ न छनका पायल को ऐ नादां, हर बार देती है यूँ मुझे बेकरारी.
सारा जहां है सपना महबूब मेरे, एक बस तू ही हकीक़त मेरी.




बुधवार, 19 अगस्त 2009

कृपया पाठक गण शीर्षक बताएं

जब सारा ज़माना ही खफा है मुझसे, तो फिजाओं के महकने से क्या होगा,
इक तू ही बातें दो चार किया करता है, ना पूछेगा हाल तो मेरा क्या होगा.
ना बरसे सावन इस बार तो क्या, फुहारों से बंजर धरती का क्या होगा,
जो ना कूकी कोयल इस बार बगिया में, लाख सरगम छेड़ने से क्या होगा.
कुछ लफ्ज़ तारीफ़ के कोई कह दे तो अच्छा है, वरना बदनाम शायर का नाम क्या होगा,
नज़र भर देख कर भी चुरा ली निगाह, जो तू इनायत ना करे तो क्या होगा.
अकेला हूँ बचपन से रहूँगा आगे भी, कोई साथी ना मिला तो क्या होगा,
चुन रहा हूँ पत्थर आशियाने के लिए, गर बन गई मजार तो क्या होगा.
रहू ना रहू मैं तेरे तवज्जो देने तक, पर मेरी ग़ज़ल रहेगी मेरा शेर होगा.

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

कशमकश

रहने दो इस समझदारों की दुनिया में इक नासमझ मुझे भी,
न सिखाओ ज़माने भर की चालाकियां मुझे भी.
यूँ तो भरते हैं दम लोग वफाओं का, रहने दो पर मुझे बेवफा ही,
यूँ ही सही पर बचा रहेगा दामन मेरा झूठी वफ़ा के वादों से.
वो जो कह गए हैं मुहब्बत ही जिंदगी है,
महबूब की बाँहों में है जन्नत भी, चाहूँगा मुझे नसीब हो जहन्नुम ही,
यूँ रहेगा बरक़रार दिल का करार और न होगी जुदाई की तड़प भी.
करके आँखें चार आशिक गिन रहे हैं रहे हैं चाँद सितारे रात भर ,
रहकर अकेला सोता हूँ चैन से और देखता हूँ सुनहले ख्वाब भी .
खुदा बचाए बला से, कहते हैं इश्क जिसे,
पर कहता है दिल बार बार ,
चाहता हूँ जिसे में टूटकर कह दूं उसे ही मैं अपना खुदा भी.