बुधवार, 19 अगस्त 2009

कृपया पाठक गण शीर्षक बताएं

जब सारा ज़माना ही खफा है मुझसे, तो फिजाओं के महकने से क्या होगा,
इक तू ही बातें दो चार किया करता है, ना पूछेगा हाल तो मेरा क्या होगा.
ना बरसे सावन इस बार तो क्या, फुहारों से बंजर धरती का क्या होगा,
जो ना कूकी कोयल इस बार बगिया में, लाख सरगम छेड़ने से क्या होगा.
कुछ लफ्ज़ तारीफ़ के कोई कह दे तो अच्छा है, वरना बदनाम शायर का नाम क्या होगा,
नज़र भर देख कर भी चुरा ली निगाह, जो तू इनायत ना करे तो क्या होगा.
अकेला हूँ बचपन से रहूँगा आगे भी, कोई साथी ना मिला तो क्या होगा,
चुन रहा हूँ पत्थर आशियाने के लिए, गर बन गई मजार तो क्या होगा.
रहू ना रहू मैं तेरे तवज्जो देने तक, पर मेरी ग़ज़ल रहेगी मेरा शेर होगा.

5 टिप्‍पणियां:

Kishanpuria ने कहा…

ek tera intezar

बेनामी ने कहा…

चुन रहा हूँ पत्थर आशियाने के लिए
गर बन गई मजार तो क्या होगा

बहुत खूब...अच्छा लिखते हैं आप..

बेनामी ने कहा…

आपकी पूरी रचना में कई प्रश्न हैं..इसलिए इसका शीर्षक 'क्या होगा ... ?' रखा जाए तो कैसा रहेगा

अर्चना तिवारी ने कहा…

अकेला हूँ बचपन से रहूँगा आगे भी,
कोई साथी ना मिला तो क्या होगा,

इतना ही कहूँगी...

जीने के बहाने लाखों हैं
जीना तुझको आया ही नहीं
कोई भी तेरा हो सकता है
कभी तूने अपनाया ही नहीं

Unknown ने कहा…

sach keha apne apki ghazal,apke sher sada k liye hain. insaan mit jate hain, per unki kriti,yaadein,aur rachnaye unhe kbhi mitne nhi deti.Aap jaise log to duniya walo k dil mein rehte hain, jinhe koi mita nhi sakta.