मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

अमावास की रात

ना वो आये ना आया कोई पैगाम उनका,
तकते रहे ये सूने नयन उनकी डगर.
क्षितिज पर हो रहा धरा का गगन से मिलन,
घटा भी मंडरा रही आज पर्वत पर.
देखा था इक रात चाँद को सितारों से घिरा हुआ,
और देखी थी जगमगाती आसमानी चादर.
लहरों ने भी खूब मचाया था शोर.
पर आज सूनी पड़ी हैं गलियाँ सारी,
ना जाने वो कब आयंगे ,
कब खिलेगा खुशियों का संसार.
दिन गुज़रे महीने बने, बीत गए साल,
पर शेष रहा मेरा इंतजार.
चाँद भी ना आया आज दिल बहलाने को ,
बड़ी स्याह है आज की रात ,
तरसती रही अमावास की रात दीदार को चाँद के रात भर.