मंगलवार, 29 जनवरी 2008

पवन

मैं "एक बदनाम शायर" अब तक तो खुद के लिए ही लिखता आया था,
जो मुझमे था वही बस मैंने शब्दों में पिरोकर कागज़ पर उतार दिया.
अब मैंने कुछ कल्पना का सहारा लिया है,
आशा है आपको पसंद आएगा.
आपकी अनमोल टिप्पणियों के इंतज़ार में,
"एक बदनाम शायर"









धीरे-धीरे मंद-मंद चलती है पवन,
छूकर मुझे चली जाती है पवन.
सरगोशियों के एहसासों से भरी ये पवन,
देती है मुझको नित नए सपन.

चहचहाना चिडियों का, गुन्जाना भवरों का,
सब सुनती जाती है मदमस्त पवन.
दूर नील गगन में उड़ते पंछी कुछ छोटे कुछ बड़े,
कुछ काले कुछ नीले ओढे पंखो के दुशाले
जहाँ करते हैं विचरण , वो है मेरा वतन।

रूकती नहीं कहीं, चलती जाती है पवन,
देती संदेसा गतिमान होने का,
हर पल उन्नत बनने का,
गढ़ने का सफलता के नवकिर्तिमान.
देती मुझको जीवन ये पवन,
सबसे न्यारी सबसे प्यारी ये पवन.

1 टिप्पणी:

अर्चना तिवारी ने कहा…

इतना सुंदर लिखा है आपने| सच हर कोई अपने बारे में ही सोचता है पर यदि अपने से हट कर देखा जाय तो बड़ी सुन्दरता है इस दुनिया में,एक प्रेरणा,एक सुकून मिलता है| प्रकृति ने हमें अनमोल रत्न दिए हैं| परन्तु उसे छोड़ कर हम भौतिक वस्तुओं में उनको ढूंढते हैं|
सच अति सुंदर है......ये पवन....