रहने दो इस समझदारों की दुनिया में इक नासमझ मुझे भी,
न सिखाओ ज़माने भर की चालाकियां मुझे भी.
यूँ तो भरते हैं दम लोग वफाओं का, रहने दो पर मुझे बेवफा ही,
यूँ ही सही पर बचा रहेगा दामन मेरा झूठी वफ़ा के वादों से.
वो जो कह गए हैं मुहब्बत ही जिंदगी है,
महबूब की बाँहों में है जन्नत भी, चाहूँगा मुझे नसीब हो जहन्नुम ही,
यूँ रहेगा बरक़रार दिल का करार और न होगी जुदाई की तड़प भी.
करके आँखें चार आशिक गिन रहे हैं रहे हैं चाँद सितारे रात भर ,
रहकर अकेला सोता हूँ चैन से और देखता हूँ सुनहले ख्वाब भी .
खुदा बचाए बला से, कहते हैं इश्क जिसे,
पर कहता है दिल बार बार ,
चाहता हूँ जिसे में टूटकर कह दूं उसे ही मैं अपना खुदा भी.
मंगलवार, 4 अगस्त 2009
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5 टिप्पणियां:
शायर साहब बहुत खूब लिखा है आपने......चाहता हूँ जिसे में टूटकर कह दूं उसे ही मैं अपना खुदा भी...
कश्ती क्या डूबती जो चली ही नहीं
रिश्ते क्या टूटते जो बने ही नहीं
अपनी ही कशमकश में ग़मगीन हो गया
दिल को छूने वाला लिखा है......... लाजवाब
mind blowing.............. shayer saheb,keep it up!!!!!!!!!!!!!!!!!!
janaab............kaisi kashmakash hai apki, apki kashmakash padhkar to hum kashmakash mein pad gaye!
shayer saheb!talaash puri hote hi apki kashmakash bh dur ho jayegi
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