हमें आता न था आंसू बहाना,
ये तो हमारे दोस्तों की इनायत है.
न कोई गिला है उनसे हमें ,
न उनसे कोई शिकायत है.
उम्र सारी कटी आरजू में उनकी,
दीदार की रस्में ही अब हमारी इबादत है.
वो जरा तवज्जो करें तो
कह सुनाएँ हम हाल-ए-दिल अपना भी,
क्या इतनी सी हमें इजाज़त है.
ढलके थे कुछ अश्क भी मेरी आँखों से
पर जुबां में हरक़त न थी,
हमसे हिमाकत न हुई,
गोया क्या यही शराफत है.
खबर उनके आने की सुन
कफ़न में अब चैन कहाँ मुझको ,
कोई बतलाये क्या यही मुहब्बत है.
गुरुवार, 17 जनवरी 2008
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1 टिप्पणी:
fantastic! shayeri to aapne khub likhi janaaaaaab...... jald hi koi achhi ladki aapki zindagi mein aaye aur aapki kalpanao ko haqeeqat ka roop mile. aisi dua hai meri,BEST OF LUCK!
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